Sunday, March 27, 2022

दिल्ली की भीड़ में चुपचाप सा एक स्मारक

डॉ कलाम स्मारक 

क्या आप जानते हैं कि दिल्ली में भारत के मिसाइल मैन डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम का एक स्मारक यानी मेमोरियल है ? अगर नहीं जानते हैं तो आप ऐसे अकेले शख़्स नहीं हैं क्योंकि जहाँ ये समारक है उस जगह मैं रेगुलर बेसिस पे जाती रहती हूँ पर कभी पता ही नहीं चला कि वहाँ पर डॉ कलाम की यादों को समेटे कोई एक छोटी सी जगह भी है । इसकी वजह शायद पब्लिसिटी की कमी है क्योंकि वहां उनके जो पोस्टर्स लगे हैं वो काफ़ी छोटे हैं और एंट्री करते हुए भीड़ में कहीं छुप जाते हैं, उन पर किसी की नज़र ही नहीं पड़ती।

kalam memorial, entry gate

अगर आप दिल्ली हाट INA जाते हों या फ्यूचर में जाने की इच्छा रखते हों तो आप डॉ कलाम मेमोरियल भी जा सकते हैं। दिल्ली हाट के गेट नं 2 से तो एकदम फ्री एंट्री हैं लेकिन आप अगर दिल्ली हाट जा रहे हैं तो एंट्री लेते ही नाक की सीध में चलते जाएँ। लास्ट में जहाँ स्टेज हैं उससे पहले सीधे हाथ की तरफ़ स्टाल्स लगते हैं बस वहीं मुड़ जाएँ और आगे बढ़ते रहे आप कलाम मेमोरियल तक पहुँच जाएंगे, जिस का उद्घाटन 30 जुलाई 2016 को हुआ था। 

बहुत कम लोग होते हैं जो सबके दिलों में बसते हैं, जिनका सभी सम्मान करते हैं। ऐसी ही हस्ती थे डॉ कलाम जिनसे कभी न कभी सभी प्रेरित हुए हैं और मेरी तो जिससे भी बात हुई है उसे डॉ कलाम की तारीफ़ करते हुए ही पाया है। उनके जैसे शानदार इंसान को थोड़ा नज़दीक़ से जानने के लिए भी इस मेमोरियल को देखना ज़रुरी हो जाता है।  

कलाम मेमोरियल में एंट्री करते ही सबसे पहले आपको एक बड़ा सा स्टेचू नज़र आएगा जिसमें कुछ बच्चों के साथ डॉ कलाम खड़े हैं। अंदर जाते ही हर दीवार पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स आपको दिख जाएंगे जिन पर डॉ कलाम का जीवन परिचय और उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ लिखी हैं। साथ ही एक आवाज़ सुनाई देती हैं जो throughout आपके साथ उस मेमोरियल का सफ़र तय करती है, उस A/V में कुछ बच्चे डॉ कलाम के विषय में अपने विचार साँझा कर रहे हैं।

डॉ कलाम की जयंती और कुछ विशेष अवसरों पर डॉ कलाम फाउंडेशन की तरफ़ से यहाँ ड्राइंग कम्पटीशन का आयोजन किया जाता है जिसमें अलग-अलग स्कूलों से चुने हुए बच्चे आते हैं। उन्हीं बच्चों द्वारा बनाए गए कुछ पोर्ट्रेट यहाँ आप देख सकते हैं। स्टिप्लिंग, पेंसिल शेडिंग, फ़्लैट पोस्टर कलर्स से बने ये पोर्ट्रेट देखकर बच्चों के हुनर का पता चलता है। एक पोर्ट्रेट ऐसा है जिसे आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि उस पूरे पोर्ट्रेट में तमिल में उनका नाम लिखा है। कुछ और पेंटिंग्स हैं जो अलग-अलग कलाकारों ने बनाई हैं। 

kalam memorial, dr kalam quotes

थोड़ा आगे जाएँगे तो जितने भी पिलर्स हैं वहां डॉ कलाम के कोट्स पढ़ने को मिलेंगे। और फिर शुरु होगी वो यात्रा जहाँ आप महसूस कर पाएँगे कि एक इतना बड़ा इंसान कितनी साधारण ज़िंदगी जीता था। शायद इसीलिए उन्हें पीपल्स प्रेजिडेंट कहा जाता है। उनके मॉर्निंग वॉक की टी-शर्ट, दो सूट, चश्मा उनसे जुड़ी बहुत सी यादगार चीज़ें यहाँ देखने को मिल जाती हैं। किताबों की तो कई अलमारियां हैं। मैं यहाँ जितना भी बता दूँ कम है क्योंकि कुछ चीज़ों को सामने देखकर ही महसूस किया जा सकता है। 

यूँ तो हमारे देश में म्यूजियम या मेमोरियल जाने का कल्चर नहीं है ख़ासतौर पर दिल्ली जैसी जगहों पर। अगर कभी गए भी तो सिर्फ़ बच्चों के लिए वो भी तब जब कोई स्कूल प्रोजेक्ट हुआ या जब ऐसी जगहों पर जाने में ख़ुद बच्चे या उसके माता-पिता की रुचि हो, वर्ना लोग बच्चों को भी मॉल ले जाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। शायद इसीलिए स्मारक या संग्रहालय आमतौर पर ख़ाली रहते हैं। लेकिन कभी ऐसी जगहों पर जाकर देखिए, वहाँ की वाइब्रेशंस को महसूस कीजिए। और एक छोटी सी बात ये कि जब हम हम ऐसी जगहों पर जाते हैं तो अक्सर चुपचाप देखकर वापस आ जाते हैं, चाहे कुछ सवाल अंदर ही अंदर उमड़-घुमड़ रहे हों, पूछते नहीं हैं तो मेरी सलाह यही है कि अगर किसी पेंटिंग या किसी और चीज़ के बारे में कोई सवाल ज़हन में आये तो वहाँ बैठे किसी व्यक्ति से ज़रुर पूछ लें अगर वो व्यक्ति नहीं बता सकेगा तो किसी ऐसे से मिलवा देगा तो बता सकता हो। 

कितना भाग दौड़ रहे हैं हम चाहे वो सोशल मीडिया पर चले जाएँ या टीवी पर हर जगह लोग बस एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहते हैं। कभी-कभी ऐसी जगहें आपको अनजाने एक सुकून दे जाती हैं। ख़ासतौर पर अगर आप डॉ कलाम के प्रशंसक है ( शायद ही कोई होगा जो उनका प्रशंसक न हो ) तो मेरी राय में आपको यहाँ ज़रुर जाना चाहिए। सोमवार को छोड़कर सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक कलाम मेमोरियल खुला रहता है। अंदर वीडियोग्राफी की इजाज़त नहीं है, हाँ आप फ़ोटोज़ के ज़रिए कुछ यादें इकठ्ठा कर सकते हैं। 

Kalam Memorial, statue of Dr APJ Abdul kalam

Friday, March 25, 2022

सूरजकुंड क्राफ़्ट मेला 2022 अपने कुछ बदलावों के बावजूद बहुत ही ख़ास है

कॉलेज के ज़माने से सूरजकुंड मेला मेरा फ़ेवरेट है, जब-जब भी संभव था मैं वहाँ गई। 2020 में जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तब तक ये मेला फ़रवरी के महीने में लगा करता था, इसीलिए 2020 में लोग इस मेले का आनंद उठा पाए थे। उसके बाद से तो कोरोना ने सब कुछ बदल दिया, जिनमें दिल्ली और उसके आस-पास लगने वाले मेले भी शामिल हैं। इसीलिए इस बार सूरजकुंड क्राफ़्ट मेला एक-डेढ़ महीना देरी से शुरु हुआ है। एक तो इस बार गर्मियां कुछ जल्दी ही अवतरित हो गई हैं दूसरा मेले में एंट्री का वक़्त भी वो कर दिया गया है जब सूरज की तपिश अपने उरुज पर होती है, दोपहर 12:30 बजे। टिकट का दाम भी बढ़ गया है, पहले 80 रुपए हुआ करता था अब 120 रुपए  है लेकिन बुज़ुर्गों और विद्यार्थियों को रिबेट दी गई है। ख़ैर ! एक घंटा इंतज़ार के बाद जब एंट्री की तो लोक संगीत की धुन, और लगातार होती अनाउंसमेंट सुनकर इतनी तेज़ धूप में भी बहुत सुकून मिला। 

Surajkund Craft Mela, Entry Gate
एंट्री गेट - सूरजकुंड 

अंदर जाते ही वही पुराना माहौल, वही मिटटी की ख़ुशबू, वही संगीत कहीं तुम्बा और बीन बज रही है और कहीं ढोल की धमक, ये सब सुनकर आप नाचे न नाचें लेकिन थिरकने ज़रुर लगते हैं। रंग-बिरंगी पोशाकों से सजे लोक-कलाकार आपको फ़ोन या कैमरा से रिकॉर्डिंग करते देखकर और ज़्यादा जोश में आ जाते हैं। सच कहूं तो वहाँ मौजूद सभी लोगों को देखकर ऐसा लगा जैसे बहुत दिनों से बंद परिंदों को खुला आसमान मिल गया हो। हर चेहरे पे ख़ुशी थी लेकिन सबसे ज़्यादा ख़ुशी थी उज्बेकिस्तान से आए मेहमानों के चेहरों पर। वो लोग बस हँस रहे थे और इतने पॉज़िटिव थे कि उनके जज़्बे, उनके चेहरों को देखकर वहाँ मौजूद सभी लोगों के चेहरों पर स्माइल आ जाती थी। उनमें से किसी को हिंदी नहीं आती लेकिन शायद किसी से रुपयों के बारे में नया-नया सीखा था तो एक उज्बेक स्टाल पर जब किसी ने पुछा "How Much" तो उसने कहा - "चार हज़ार दुइ सो" और कहकर ख़ुद ही बहुत ज़ोर से हँस दिया। मेरी कुछ लोगों से बात हुई और जब मैंने उन्हें appreciate किया तो एक उज़बेक महिला बहुत ज़्यादा ख़ुश होकर बोलीं - yeeee !! We enjoy every moment of life . ऐसी जगहों पर जाकर एक फ़ायदा ज़रुर होता है कि आप दूसरे देशों की संस्कृति को जान पाते हैं, नए-नए लोगों से मुलाक़ात होती है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है और सबसे बड़ी बात आप अपनी रुटीन लाइफ से अलग हटकर फ़्रेश फ़ील कर पाते हैं।  

Guest Country Uzbekistan, Surajkund mela 2022

सूरजकुंड का क्राफ़्ट मेला में इस बार 30 से ज़्यादा देश भाग ले रहे हैं जम्मू-कश्मीर थीम राज्य है और हर बार की तरह इस बार भी मेला बहुत ही मनमोहक है। कहीं बंगाल के प्रसिद्ध मुखौटे आपको अपनी तरफ़ खींचते हैं तो कहीं टेराकोटा से बने खिलोने, प्लांटर्स। एक स्टार्टअप स्टाल पर ऐसी डायरी देखने को मिली जो बीजों से बनी थी, जब वो डायरी भर जाए तो आप उसके पेज के टुकड़े करके मिटटी में दबा दें तो उसमें से अलग-अलग क़िस्म के फूलों के पौधे निकलेंगे। एक जगह प्लास्टिक की ऐसी डायरी थी जो चॉकलेट की शेप में थी और उससे चॉकलेट की ख़ुशबू भी आ रही थी। पुराने टायर से बने मूढ़े भी कई जगह दिखे, कपड़ों और राजस्थानी, गुजराती जूतियों की तो भरमार थी। एक जगह एक अनोखी सॉफ्टी दिखाई दी। 


सूरजकुंड में अलग-अलग स्टेट्स के क्राफ़्ट आइटम्स आपको अपनी तरफ़ खींचते तो ज़रुर हैं मगर उनकी आसमान छूती क़ीमत सुनकर उन्हें ख़रीदना सभी के लिए मुमकिन नहीं हो पाता। कोरोना के बाद हालात भी ऐसे हो गए हैं कि हर सामान की क़ीमत बढ़ गई है और लोगों के पास पैसों की कमी है। शायद इसलिए मेले में भीड़ तो बहुत थी मगर ख़रीदार कम थे। 





मेला देखने आये लोगों के मनोरंजन का पूरा ख़याल रखा गया है। मैजिक शो, लाइव कॉन्सर्ट, विदेशी कलाकारों के नृत्य-संगीत के कार्यक्रम सभी मेला देखने आए लोगों को ठिठक कर देखने सुनने पर मजबूर कर देते हैं। सेल्फ़ी स्पॉट्स जगह-जगह हैं। मेले के आख़िर में जाते हैं तो एक रंगघर बना हुआ है उससे पहले एक टूटे-फूटे पहाड़ पर एक देवी की मूर्ति निकलती दिखती है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वो एक चट्टान को काट कर बनाई गई होगी और शायद काफ़ी पुरानी भी होगी मगर उसके बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हो पाई। उसके अलावा जगह-जगह पुराने मंदिर या पंडाल बने है जहाँ लोग फ़ोटो खींचते दिख जाते हैं।

सूरजकुंड में यूँ तो खाने-पीने की बहुत वेराइटी मिल जाती है राजस्थान, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर के अलावा साउथ इंडियन और फ़ास्ट फ़ूड आइटम्स भी मिलते हैं। चुस्की, नीम्बू-लेमन, चाट-पकौड़ी के स्टाल्स भी हैं मगर मुझे ऐसा लगता है कि पहले के मुक़ाबले में खाने के स्वाद में काफ़ी कमी आई है। लेकिन एक दिन के लिए ट्राय करने में कोई बुराई भी नहीं है। 

चलते-चलते आपको बता दूँ कि 19 मार्च 2022 से शुरू हुआ सूरजकुंड क्राफ़्ट मेला 4 अप्रैल 2022 तक चलेगा। टिकट आप ऑनलाइन भी ले सकते हैं और Paytm से भी। अगर वहाँ जाकर लेना चाहते हैं तो बहुत से काउंटर्स हैं आपको कोई मुश्किल नहीं होगी। हम जब बाहर एंट्री के लिए इंतज़ार कर रहे थे तो वहाँ बैठे पुलिसवालों से बातचीत में पता चला कि इस साल से ये मेला साल में दो बार लगाए जाने की तैयारी चल रही है लेकिन वो ये नहीं बता पाए कि कब-कब लगाया जाएगा। जब भी लगेगा ख़बर मिल ही जाएगी वैसे भी घूमने और ख़रीदारी के शौक़ीनों के लिए तो ये एक अच्छी ख़बर ही है। बस दुआ कीजिए कि कोरोना की चौथी लहर न आए और ज़िंदगी फिर से कमरों में बंद रहने को मजबूर न करे ! सूरजकुंड क्राफ़्ट मेला 2022 

Sunday, March 20, 2022

रहस्यमयी कहानियों के बीच खड़ी एक पुरानी बावली

उग्रसेन की बावली

जब फिल्म रंग दे बसंती आई थी तो हर किसी के मन में ये सवाल उठा था कि वो जगह कौन सी है जहाँ वो सभी दोस्त सीढ़ियों पर बैठ कर मस्ती करते हैं, पानी में डुबकी लगाते हैं। उस जगह के लिए अचानक लोगों के मन में एक जिज्ञासा जाग उठी थी। बहुत से लोगों ने कहा कि वो उग्रसेन की बावली है (हाँलाकि वो नाहरगढ़ का क़िला था ) मगर तब उग्रसेन की बावली का नाम बहुत ज़्यादा चर्चा में आ गया था। उस वक़्त मैंने तय कर लिया था कि जाकर ज़रुर देखूंगी मगर फ़िल्म रिलीज़ हुए सालों गुज़र गए लोग शायद उस फ़िल्म का नाम भी भूल गए और उसके बाद झूम बराबर झूम, पी के, सुल्तान, शुभ मंगल सावधान जैसी फ़िल्मों में उग्रसेन / अग्रसेन की बावली दिखाई गई पर मैं उस बावली को देखने नहीं जा पाई, सालों बाद अब जाकर ये मौक़ा मिला। 

ugrasen ki baoli name plate, new delhi

दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से थोड़ा पहले कस्तूरबा गाँधी मार्ग पर दीवानचंद के पास एक छोटी सी गली में है - उग्रसेन की बावली। उस जगह से मैं कई दफ़ा गुज़री हूँ मगर पता ही नहीं था कि वहाँ किसी गली में वो जगह है जहाँ मैं बरसों से जाना चाहती थी। दिल्ली के कोने-कोने में ऐसी अनोखी विरासतें हैं और हम जैसे लोग अक्सर वहां से गुज़रते भी हैं मगर जान ही नहीं पाते कि वहीं पास में कहीं कोई खंडहर या पुरानी भूली-बिसरी ईमारत भी है।

Entry Gate Of Ugrasen Ki Baoli, new delhi
मुख्य प्रवेश द्वार 

जब उस गली में मुड़ते हैं तो दीवारों पर बहुत ही ख़ूबसूरत चित्र (ग्रेफिटी ) देखने को मिलते हैं जहाँ आप फ़ोटो भी ले सकते हैं। सीधे हाथ की तरफ़ एक गेट है उस में एंटर करने से पहले ही पुराने ज़माने के पत्थरों का फ़र्श दिखाई दे जाता है और एक पुराना पेड़। सीधे हाथ की तरफ़ दो लाल पत्थरों की शिलाओं पर बावली से जुड़ी जानकारी उकेरी गई है। वहीं हैं चंद सीढ़ियाँ और जैसे ही सीढ़ियाँ चढ़ना ख़त्म होता है तो बाएँ हाथ पर नीचे उतरने के लिए बहुत सी सीढ़ियां इंतज़ार करती दिखाई देती हैं, बस यही है बावली। सीढ़ियों के दोनों तरफ़ मोटी दीवारों में बड़े-बड़े आले बने हुए हैं, कुछ ऐसे हैं जिसमें दो लोग आराम से खड़े हो सकते हैं, कुछ बहुत संकरे। ध्यान से देखें तो  अंदर कहीं-कहीं लोहे की सलाखों वाले दरवाज़े दिखाई देते हैं। मगर ये पता नहीं चल पाया कि उनका इस्तेमाल किसलिए होता रहा होगा। क्योंकि वहाँ कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उस बावली के बारे में कोई सटीक जानकारी दे सके। बावली में पानी भी बहुत थोड़ा था, गंदला भी था तो काला दिखाई दे रहा था या हो सकता है काला ही हो। कोई 40-50 सीढ़ियाँ उतरने के बाद एक जगह रस्सी से रोक लगा रखी है उससे नीचे जाने की इजाज़त नहीं है।लेकिन जब सीढ़ियों पर बैठकर सामने देखते हैं तो उन सारी ऐतिहासिक फ़िल्मों के दृश्य याद आने लगते हैं जिनमें ऐसी जगहें पुरानी शान-ओ-शौकत के साथ दिखाई जाती हैं। और एक अजीब सा सम्मोहन जाग जाता है, अंदर जाने की इच्छा भी होती है पर हम ठहरे आम लोग हमें परमिशन मिलना आसान कहाँ है ? 

वैसे भी इस जगह का नाम दिल्ली के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस में आता है। माना जाता है कि यहाँ भूत-प्रेत-आत्माओं का निवास है। ऐसा कब से और क्यों माना जा रहा है ये किसी को नहीं पता। पर शाम 6 बजे के बाद इसे बंद कर दिया जाता है और किसी को प्रवेश की इजाज़त नहीं दी जाती। ये अफ़वाहें इस बावली को और भी रहस्मयी और रोचक बना देती हैं। वहाँ सीढ़ियों पर बैठे-बैठे उस बावली को ध्यान से देखते हुए नज़रें कहीं बहुत अंदर तक जा रही थी, जितना ज़्यादा साफ़ दिखाई देता जा रहा था उतने ही सवाल ज़हन में उठने लगे थे। मैं इन्हीं सवालों और ख़यालों में खोई थी कि अचानक पंख फड़फड़ाने की आवाज़ से ध्यान टूटा तो देखा आसमान में ढेर सारे कबूतरों ने एक साथ उड़ान भरी और फिर तितर-बितर हो गए और हर थोड़ी-थोड़ी देर बाद ऐसा हो रहा था। दरअसल सीढियों के अगल - बगल जो आले बने हुए हैं उनमें अब कबूतरों ने भी आशियाने बना लिए हैं। एक दीवार में ईंट जितने बड़े गैप में एक कबूतर को छिपकर बैठे देखा तो मैंने सोचा अपने फ़ोन के कैमरा में उसे क़ैद कर लूँ पर मेरे फ़ोन का मेगापिक्सल मेरी आँखों से काफ़ी कम निकला इसलिए पिक्चर में अँधेरे के अलावा कुछ नहीं आया।

Ugrsen ki Baoli, Agrsen ki Baoli
उग्रसेन की बावली 

उग्रसेन की बावली जिसे अक्सर लोग अग्रसेन की बावली कहते हैं, Archeological सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा संरक्षित स्मारक है। पुराने ज़माने में बरसात के पानी को संरक्षित करने के जो बहुत से तरीक़े हुआ करते थे बावली उनमें से एक है, एक तरह का कुँआ जिसमें आप सीढ़ियां उतर कर जा सकते हैं। ये एक संरक्षित ईमारत है शायद इसीलिए दिल्ली की बाक़ी बवालियों से इसकी हालत काफ़ी बेहतर है। वहाँ लगे बोर्ड के अनुसार इसका निर्माण अग्रवाल समुदाय के पूर्वज राजा उग्रसेन ने करवाया था। एक मान्यता ये है कि मुख्यतः ये महाभारत काल में राजा उग्रसेन ने बनवाई थी बाद में इसका पुनर्निर्माण अग्रवाल समाज के राजा उग्रसेन ने कराया। लेकिन इसकी स्थापत्य कला को देखते हुए ये माना जाता है कि ये तुग़लक या लोदी काल में बनी होगी। 

जब सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहुंचे थे तो दाएँ हाथ की तरफ़ भी एक छोटी सी ईमारत थी, वो क्या थी पता नहीं ! वहां भी जाने की इजाज़त नहीं थी हांलाकि मैंने गार्ड से पूछकर छोटा सा वीडियो तो बना लिया था मगर ये पता नहीं चला कि वो क्या है। बाहर लगे बोर्ड पर मौजूद जानकारी के मुताबिक़ वहाँ एक मस्जिद भी है, तो हो सकता है ये वो ही  मस्जिद हो ! जब हम वहाँ पहुंचे थे तो काफी भीड़ थी, कुछ साउथ इंडियन स्टूडेंट्स अपने टीचर के साथ आए हुए थे। दो ट्विन्स बच्चियाँ बहुत एन्जॉय कर रही थीं, कुछ ग्रुप्स थे और ज़ाहिर है कुछ कपल्स भी थे। लेकिन अब जब दोबारा फोटोज़ और वीडियोज़ देख रही हूँ तो लग रहा है जैसे वहाँ कोई और था ही नहीं। क़रीब आधा घंटा वहाँ बैठने के बाद हम वहाँ से निकल तो आए, लेकिन उस जगह से जुड़ी कुछ कहानियाँ दिल में बसी रह गईं।