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Friday, January 7, 2022

पुरानी दिल्ली की हवेलियों की बनावट

पहले ये कहा जाता था कि बेवक़ूफ़ लोग घर बनाते हैं और समझदार उनमें रहते हैं। आजकल का सच ये है कि जिनके पास दौलत है वो लोग घर बनाते हैं बेचते हैं और जो वो दौलत कमाने की क्षमता रखते हैं वो घर ख़रीदते हैं और उनमें रहने वाले ज़्यादातर लोग वो होते हैं जो अपने घर के सपने को पूरा करने के लिए सालों तक चलने वाले क़र्ज़ में डूब जाते हैं। लेकिन इस सच्चाई को तो कोई नहीं नकार सकता कि अपना घर बनाना हर इंसान का सबसे बड़ा ख़्वाब होता है और दिल्ली में घर हो तो आप अचानक बहुत इज़्ज़तदार हो जाते हैं। असलियत आपको ही पता होती है कि आपने क्या-क्या पापड़ बेले, कैसी-कैसी नसीहतें सुनी और घर बनाते हुए क्या-क्या ग़लतियाँ कीं। क्योंकि सिर्फ़ घर बनाना ही काफ़ी नहीं होता वो मज़बूत और सुरक्षित भी होने चाहिए। 

अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो देखा जिसमें बर्मिंघम में घर बनने के प्रोसेस को दिखाया था, क्या मटीरियल इस्तेमाल किया जाता है और स्ट्रक्चर कैसा होता है। उस वीडियो को देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई क्योंकि जो हमारे पुराने तरीक़े थे और जिन्हें हम छोड़ चुके हैं, उन्हीं के इस्तेमाल से बाहर के देशों में एक मज़बूत घर बनाया जा रहा है। (पता नहीं शुरु से वही तरीक़ा इस्तेमाल किया जाता रहा है या ये वहाँ की मॉडर्न टेक्नोलॉजी है )

पुरानी दिल्ली की हवेलियों को अगर आपने उनके पुराने स्वरुप में देखा हो तो आपको पता होगा कि उन हवेलियों में लेंटर नहीं होता था बल्कि छत बनाने के लिए कड़ियों और पटिया का इस्तेमाल किया जाता था। वहाँ क़रीब एक-डेढ़ दशक पहले जब तक तक फ़्लैट्स बनने शुरू नहीं हुए थे यही चलन था। और पुरानी दिल्ली वाले कॉलोनी में रहने वालों को हमेशा यही सलाह देते थे कि कड़ियों वाली छत डलवाओ, पटिया डलवाओ, वो ज़्यादा मज़बूत होती है। मगर उन पुरानी हवेलियों में बरसात के दिनों में कभी-कभार छत से पानी टपकने लगता था इसीलिए लोग उस सलाह को नज़अंदाज़ कर देते थे। कड़ियाँ घर की ख़ूबसूरती में दाग़ की तरह लगती थीं इसीलिए हमारी कॉलोनियों में लेंटर वाली छत पड़ती है, जिसमें POP चार चाँद लगा देता है। आजकल तो छतों के इतने डिज़ाइन आ गए हैं कि जिसके पास जितना पैसा हो वो उतनी ख़ूबसूरत छत बनवा सकता है। जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा पर डालने के लिए गुड़ होना भी तो चाहिए।  

खैर ! बर्मिंघम के घर की बात करते हैं वहाँ छत कड़ियों और टाइलों पर ही टिकी होती है जिन्हें फोम और ऐक्रेलिक शीट की लेयर्स से कवर किया जाता है और इस तरह वो छत न तो चूती है न ही जल्दी गर्म होती है। और उतनी ही ख़ूबसूरत दिखती है जितनी कोई लेंटर वाली छत। 

अपने यहाँ पुरानी कॉलोनियों में चले जाएँ तो जो बहुत पुराने घर बने हुए हैं या जिन्हें ठीक से नहीं बनाया गया है,  उनके फ़र्श तक में सीलन आ जाती है। बरसात के दिनों में फ़र्श में से सफ़ेद रुई जैसा कुछ निकलने लगता है, कभी कभी ज़्यादा बरसात में फ़र्श में से पानी भी आने लगता है। जहाँ फ़र्श मार्बल का हो वहाँ ये सीलन दीवारों में चली जाती है। बर्मिंघम में इसका इलाज है लेंटर, जो लेंटर हम छत पर डालते हैं उसी तरीके से वो फ़र्श बनाते हैं। मुझे आर्किटेक्चर के बारे में ज़्यादा कुछ पता नहीं है मगर इतना ज़रुर जानती हूँ वो तरीक़ा है बड़ा यूनिक, उससे न तो फ़र्श ठण्डा रहता है न ही ज़मीन से सीलन आती है। फर्श में पहले कॉन्क्रीट डाला जाता है, उसके बाद लोहे का जाल फिर कॉन्क्रीट और फ़ोम शीट के इस्तेमाल से एक नार्मल फर्श बनाया जाता है और ऊपर से कारपेट डाल दिया जाता है बस...... और सुना है कि वहाँ के मकान काफ़ी मज़बूत होते हैं, उन्हें बार-बार मरम्मत की ज़रुरत नहीं पड़ती। 

दिल्ली की पुराने ज़माने की बड़ी-बड़ी हवेलियों या स्मारकों को देखकर बहुत दफ़ा ये ख़याल आता है कि आख़िर उस ज़माने में जब न इतनी सहूलियतें थीं न ही मशीनरी और न ही तकनीक इतनी उन्नत थी तो कैसे उन लोगों ने इतनी ऊंची और मज़बूत इमारतें बनाई होंगी। और दिल्ली ही क्यों आप पूरे देश में देख लें......  क्या हवा महल जैसी मिसाल दुनिया में कहीं मिलेगी ? जो राजस्थान की तपती गर्मी में बिना पंखे और AC के ठंडक पहुंचाती है !!  इसी तरह दिल्ली की हवेलियों की बनावट है, वहाँ गर्मी में ठंडक रहती है और सर्दियों में हवेलियों के अंदर बाहर की शीत लहर का एहसास भी नहीं होता। उनकी बनावट ऐसी है जो सिर्फ़ ठंडी हवाओं से ही नहीं बचाती बल्कि बाहर के शोर से भी बचाती हैं। यानी Noise Pollution जिसकी समस्या दिल्ली में दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और जिसे हम में से कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा। और एक चीज़ से बचाती हैं चोरी-चकारी से, आपने शायद ही कभी सुना हो कि पुरानी दिल्ली में चोरों ने किसी घर में सेंध लगाई हो क्योंकि वहाँ से चोरी करके भागना ही आसान नहीं है। हर गली किसी दूसरी गली में खुलती है और वो दूसरी गली किसी तीसरी में और अनजान इंसान उन गलियों में सिर्फ़ गोल-गोल घूमता रह जाएगा, वहाँ से बाहर नहीं निकल पाएगा।