चाँदनी चौक अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए मशहूर रहा है। यहाँ जितने शौक़ से रामलीला की सवारी निकलती रही है उतनी ही श्रद्धा से प्रभात फेरी भी निकलती है और ताज़िए भी। कोई और धार्मिक उत्सव हो यहाँ के लोग अक्सर मिल जुल कर मानते रहे हैं। इसकी सदभाव की मिसाल तो खुद वो लम्बी सड़क है जो लाल क़िले से सीधी फ़तेहपुरी जाती है। उस एक रोड पर ही जैन मंदिर से लेकर गौरीशंकर मंदिर फिर गुरुद्वारा, चर्च और आखिर में फ़तेहपुरी मस्जिद सभी धर्मों के आस्था स्थल मिल जाते हैं। लेकिन इनके अलावा भी बहुत से छोटे-बड़े मंदिर-मस्जिद इस पूरे इलाक़े में हैं, जिनकी सभी धर्मों के लोग इज़्ज़त करते हैं और किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं होती।
चाँदनी चौक की इसी रोड पर घंटाघर की तरफ़ जाते हुए नटराज भल्ले वाले की दुकान से ज़रा सा आगे एक छोटा सा हनुमान मंदिर हुआ करता था।
कहा जा रहा है कि ये मंदिर शाहजहाँनाबाद प्रोजेक्ट में यानी चांदनी चौक के सौन्दर्यीकरण के काम में बाधा था। हाँलाकि उस मंदिर वाली जगह पर एक पुराना पीपल का पेड़ भी है जो कोर्ट के ही एक और आदेश के मुताबिक़ काटा नहीं जा सकता। बल्कि हर पेड़ के आसपास 7" x 7" का चबूतरा बनाया जाना लाज़मी है और लोगों को यही एतराज़ है की जब इतना बड़ा चबूतरा बनना ही है तो मंदिर को क्यों तोड़ा जा रहा है क्योंकि वो मंदिर भी लगभग इतना ही छोटा था। पर जनता के घोर विरोध के बावजूद वो प्राचीन मंदिर कल तोड़ दिया गया।
गौरवशाली इतिहास की नक़्ल करने के लिए, उस अतीत दोहराने की नाकाम कोशिश में, अतीत की निशानियों को ढहा देने में कौन सी समझदारी है ये मेरी समझ में नहीं तो आता खासकर जब उनसे किसी की श्रद्धा भी जुड़ी हो।
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