पुरानी दिल्ली के चाँदनी चौक में तो पुराना शाहजहाँनाबाद फिर से बनाने की कोशिश की जा रही है। पर मैं सोचती हूँ क्या उससे पुरानी दिल्ली की हालत सचमुच बदल जाएगी ??!! क्या वहाँ के गली, कूँचे, कटरे, हवेलियाँ सब की हालत सुधर जाएगी ??!! मुझे तो ऐसा नहीं लगता......... आख़िर सत्ता बदल जाने से कभी आम जनता की हालत बदली है ! लेकिन जिस तरह पुरानी दिल्ली की कुछ हवेलियों को रेनोवेट करा के उन्हें पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है, उससे ऐसा ज़रुर लगता है कि एक दिन पुरानी दिल्ली का पूरा इलाक़ा सिर्फ़ दर्शनीय स्थल में बदल कर रह जाएगा और तब बाक़ी दिल्ली वाले उन्हें देखने जाया करेंगे। क्योंकि अभी तो आलम ये है कि वहाँ कोई घटना घट जाए, तो कोई बड़ा अख़बार भी तुरंत उसे कवर नहीं करता, न ही टीवी चैनल्स उसका कोई लाइव टेलीकास्ट करते हैं। हाँलाकि ये काफ़ी हैरत की बात है, पर भला हो सोशल मीडिया का और उन Youtubers का (जो शायद वहीं के रहने वाले होंगे) जिनकी वजह से लोगों तक वहॉं की ख़बर पहुँच जाती है।
जिस दिन चाँदनी चौक के बीचों-बीच बना हनुमान मंदिर गिराया गया उसी के अगले दिन चांदनी चौक के कटरा नील में दर्जनों दुकानें जल गईं पर मैंने न तो किसी अख़बार में वो ख़बर पढ़ी, न ही टीवी पर वो न्यूज़ दिखाई गई। शायद इस तरह की ख़बरों से किसी को कोई फ़ायदा नहीं मिलता ! क्योंकि ये ख़बरें TRP नहीं बढ़ातीं।
कटरा नील जिसे वहाँ के आम लोग नील का कटरा कहते हैं, आज वहाँ लेडीज सूट और कुर्तियों की होलसेल मार्किट है। लेकिन एक ज़माने में वहाँ नील बनाया और बेचा जाता था इसीलिए इस का नाम पड़ा नील का कटरा। वहाँ की गली घंटेश्वर में प्राचीन घंटेश्वर मंदिर है जो वहाँ काफ़ी मशहूर है। एक ज़माने में यमुना नदी इसके आस-पास बहती थी तो वहाँ एक गली धोबियान भी हुआ करती थी, जहाँ धोबी रहा करते थे। इसी के पीछे है बाग़ दीवार, और सब्ज़ी मंडी के साथ-साथ खोया मंडी भी है। पहले तो दिल्ली के ज़्यादातर मिठाई वाले सुबह-सुबह यहीं से खोया ले जाते थे। अब तो दिल्ली में ज़्यादातर लोग मिठाई से परहेज़ रखते हैं, कुछ डाइबिटीज़ की वजह से तो कुछ डाइटिंग के कारण, खाते भी हैं तो ब्रांडेड शुगर-फ़्री वाली मिठाई। लेकिन सच कहूँ तो, वो जो पहले असली खोए को घर लाकर भूना जाता था, फिर उससे तरह-तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती थीं उनकी महक और स्वाद की बात ही कुछ और थी।
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