हिंदी दिवस आया और कुछ सेमिनार्स, लेक्चर्स और कई औपचारिक कार्यक्रमों के साथ संपन्न हो गया। न तो इस दिन किसी ने सोचा और न ही इस दिन के बाद किसी को इस बात की फ़िक्र होगी कि स्कूलों में हिंदी बोलने पर बच्चों को सज़ा क्यों दी जाती है ? अगर आप इसे राजभाषा कहते हैं तो क्यों स्कूलों में हिंदी अनिवार्य विषय नहीं है ? भारत के सभी राज्यों को देखें तो सबमें अपनी-अपनी मातृभाषा के लिए इतना सम्मान है कि उन्हें और कोई भाषा आए न आए, अपनी मातृभाषा ज़रुर आती है। चाहे वो बंगाली हो, मराठी हो, भोजपुरी,तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम या पंजाबी। लेकिन हिन्दी-भाषी लोगों को अपनी ही भाषा बोलते हुए शर्म आती है, शायद इसीलिए ज़्यादातर प्राइवेट स्कूल्स हिंदी बोलने पर सज़ा देने की हिम्मत कर पाते हैं।
कॉर्पोरेट सेक्टर में तो हिंदी बोलने और लिखने वालों को ऐसी नज़रों से देखा जाता है जैसे वो अनपढ़ हों। मीडिया में कमाई का ज़रिया तो हिंदी होती है पर बातचीत से हिंदी एकदम ग़ायब हो जाती है, खासतौर पर आप अगर किसी बड़ी पोस्ट पर हैं तो आप हिंदी कैसे बोल सकते हैं !!! भारत के उच्च और उच्चतम न्यायालयों में भी हिंदी का प्रयोग न के बराबर है। आजकल टीवी के 90 प्रतिशत फ़िल्मी चैनल्स पर अक्सर हिंदी में डब की गई दक्षिण भारतीय फ़िल्में दिखाई देती हैं। कई दक्षिण भारतीय फिल्मकार अपनी फिल्में हिंदी में भी साथ-साथ बना रहे हैं। लेकिन जब हिंदी को देश की भाषा बनाने का प्रस्ताव आता है तो हंगामा हो जाता है। कहा जाता है कि हिंदी उन पर ज़बरदस्ती थोपी जा रही है। अगर हिंदी से इतनी ही दिक्कत है तो क्यों लोग हिंदी सिनेमा में जगह बनाने के लिए तड़पते हैं ?
हम आम बातचीत में या कारोबारी भाषा में भी हिंदी के अलावा उर्दू और इंग्लिश के कितने ही शब्दों का बेझिझक इस्तेमाल कर लेते हैं। लेकिन शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रोफेशनली उर्दू लिखते हुए या बोलते हुए हिंदी के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, हाँ उनकी जगह आप इंग्लिश के शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। यक़ीन नहीं आता तो कोई साप्ताहिक उर्दू पत्रिका उठा के देख लीजिए या भारत के उर्दू चैनल लगा लीजिए, ख़ुद समझ जाएँगे। और तो और रद्दी वाला भी हिंदी के अख़बार कम पैसों में लेता है !
और हम बात करते हैं हिंदी के प्रचार-प्रसार और तरक़्क़ी की !!!
ग़लत हिंदी बोलने पर हमें कोई शर्मिंदगी नहीं होती पर इंग्लिश ज़रा भी ग़लत हो जाए तो हम पानी-पानी हो जाते हैं। और इसके लिए काफ़ी हद तक हम ही ज़िम्मेदार है, जो अँग्रेज़ी ग़लत बोलने पर तुरंत टोक देते हैं लेकिन जब कोई हिंदी ग़लत बोलता या लिखता है तो किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बल्कि "चलता है"। आज के बच्चों को तो छोड़िए कितने ही शिक्षकों को ये नहीं पता होता कि हिंदी में किन शब्दों पर बिंदी यानी अनुस्वार लगता है और किन पर चँद्र बिंदु। सुना तो ये भी है कि अब चँद्र बिंदु का चलन ही ख़त्म हो गया है, बिंदु लगाएँ या ग़लत जगह लगाएँ वो "ग़लती" ही नहीं मानी जाती। हिंदी की गिनती और वर्णमाला की हालत तो और भी ख़राब है। पर हम बस हिंदी दिवस पर कोरे भाषण देंगे या उन्हें सुनकर तालियाँ बजाकर अपने कर्तव्य का पालन कर लेंगे। हम लोग आँकड़े देख कर भी बहुत जल्दी ख़ुश हो जाते है, 900 से ज़्यादा हिंदी शब्द ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी (शब्दकोष) में शामिल हो गए- "WOW " !!!!!
हमारे साथ परेशानी ये है कि हम ख़ुद से ज़्यादा दूसरों की स्वीकृति को मान्यता देना पसंद करते हैं। जब दूसरे हमारी भाषा, हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति को तवज्जो देते हैं तो हम अचानक जाग जाते हैं।
क्यों अपनी ही भाषा बोलते लिखते हुए हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है ?
क्यों शुद्ध हिंदी बोलना अक्सर मज़ाक़ का विषय बन जाता है ?
क्यों हम अपनी भाषा को वो सम्मान नहीं देते जिसकी वो हक़दार है ?
ये ठीक है कि सिर्फ़ हिंदी लिख-पढ़ और बोल कर हिंदुस्तान में सफलता की ऊँचाइयों को छूना मुश्किल है। लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं है कि हम अपनी भाषा का सम्मान करना छोड़ दे। मैंने कहीं पढ़ा था कि जो अपनी भाषा का सम्मान नहीं करता, दुनिया में उसे भी सम्मान नहीं मिलता। और फिर कोई दूसरा तो आकर हमारी सोच हमारे हालात नहीं बदलेगा, ये कोशिश तो हमें ही करनी पड़ेगी। शायद उस दिन हम सही मायनों में हिंदी दिवस का जश्न मना पाएँ !!!
कॉर्पोरेट सेक्टर में तो हिंदी बोलने और लिखने वालों को ऐसी नज़रों से देखा जाता है जैसे वो अनपढ़ हों। मीडिया में कमाई का ज़रिया तो हिंदी होती है पर बातचीत से हिंदी एकदम ग़ायब हो जाती है, खासतौर पर आप अगर किसी बड़ी पोस्ट पर हैं तो आप हिंदी कैसे बोल सकते हैं !!! भारत के उच्च और उच्चतम न्यायालयों में भी हिंदी का प्रयोग न के बराबर है। आजकल टीवी के 90 प्रतिशत फ़िल्मी चैनल्स पर अक्सर हिंदी में डब की गई दक्षिण भारतीय फ़िल्में दिखाई देती हैं। कई दक्षिण भारतीय फिल्मकार अपनी फिल्में हिंदी में भी साथ-साथ बना रहे हैं। लेकिन जब हिंदी को देश की भाषा बनाने का प्रस्ताव आता है तो हंगामा हो जाता है। कहा जाता है कि हिंदी उन पर ज़बरदस्ती थोपी जा रही है। अगर हिंदी से इतनी ही दिक्कत है तो क्यों लोग हिंदी सिनेमा में जगह बनाने के लिए तड़पते हैं ?
हम आम बातचीत में या कारोबारी भाषा में भी हिंदी के अलावा उर्दू और इंग्लिश के कितने ही शब्दों का बेझिझक इस्तेमाल कर लेते हैं। लेकिन शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रोफेशनली उर्दू लिखते हुए या बोलते हुए हिंदी के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, हाँ उनकी जगह आप इंग्लिश के शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। यक़ीन नहीं आता तो कोई साप्ताहिक उर्दू पत्रिका उठा के देख लीजिए या भारत के उर्दू चैनल लगा लीजिए, ख़ुद समझ जाएँगे। और तो और रद्दी वाला भी हिंदी के अख़बार कम पैसों में लेता है !
और हम बात करते हैं हिंदी के प्रचार-प्रसार और तरक़्क़ी की !!!
ग़लत हिंदी बोलने पर हमें कोई शर्मिंदगी नहीं होती पर इंग्लिश ज़रा भी ग़लत हो जाए तो हम पानी-पानी हो जाते हैं। और इसके लिए काफ़ी हद तक हम ही ज़िम्मेदार है, जो अँग्रेज़ी ग़लत बोलने पर तुरंत टोक देते हैं लेकिन जब कोई हिंदी ग़लत बोलता या लिखता है तो किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बल्कि "चलता है"। आज के बच्चों को तो छोड़िए कितने ही शिक्षकों को ये नहीं पता होता कि हिंदी में किन शब्दों पर बिंदी यानी अनुस्वार लगता है और किन पर चँद्र बिंदु। सुना तो ये भी है कि अब चँद्र बिंदु का चलन ही ख़त्म हो गया है, बिंदु लगाएँ या ग़लत जगह लगाएँ वो "ग़लती" ही नहीं मानी जाती। हिंदी की गिनती और वर्णमाला की हालत तो और भी ख़राब है। पर हम बस हिंदी दिवस पर कोरे भाषण देंगे या उन्हें सुनकर तालियाँ बजाकर अपने कर्तव्य का पालन कर लेंगे। हम लोग आँकड़े देख कर भी बहुत जल्दी ख़ुश हो जाते है, 900 से ज़्यादा हिंदी शब्द ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी (शब्दकोष) में शामिल हो गए- "WOW " !!!!!
हमारे साथ परेशानी ये है कि हम ख़ुद से ज़्यादा दूसरों की स्वीकृति को मान्यता देना पसंद करते हैं। जब दूसरे हमारी भाषा, हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति को तवज्जो देते हैं तो हम अचानक जाग जाते हैं।
क्यों अपनी ही भाषा बोलते लिखते हुए हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है ?
क्यों शुद्ध हिंदी बोलना अक्सर मज़ाक़ का विषय बन जाता है ?
क्यों हम अपनी भाषा को वो सम्मान नहीं देते जिसकी वो हक़दार है ?
ये ठीक है कि सिर्फ़ हिंदी लिख-पढ़ और बोल कर हिंदुस्तान में सफलता की ऊँचाइयों को छूना मुश्किल है। लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं है कि हम अपनी भाषा का सम्मान करना छोड़ दे। मैंने कहीं पढ़ा था कि जो अपनी भाषा का सम्मान नहीं करता, दुनिया में उसे भी सम्मान नहीं मिलता। और फिर कोई दूसरा तो आकर हमारी सोच हमारे हालात नहीं बदलेगा, ये कोशिश तो हमें ही करनी पड़ेगी। शायद उस दिन हम सही मायनों में हिंदी दिवस का जश्न मना पाएँ !!!
Thanx RITU !
ReplyDeletekabhi vishay par apni tippani bhi diya karein.
Hindi sabke liye zaruri hai lekin wahin Tak jahan Tak un logo ka kaam chalta ya nikalta ho. Hota hai aisa. Kehte hai na vinash kaale vipreet budhi. Likhte rahiye.
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