Saturday, December 19, 2020

"दिल्ली" वो नाम जिसने एक लम्बा सफ़र तय किया

मिर्ज़ा ग़ालिब और दिल्ली का क्या रिश्ता है, इससे तो सभी वाक़िफ़ हैं और दिल्ली से उन्हें कितनी मोहब्बत थी ये इस शेर से ज़ाहिर होता है -

इक रोज़ अपनी रुह से पूछा, कि दिल्ली क्या है ?
तो यूँ जवाब में कह गए,
ये दुनिया मानो जिस्म है और दिल्ली उसकी जान है। 
-मिर्ज़ा ग़ालिब-   

हम जहाँ रहते हैं, या जिन जगहों पर हमने एक अच्छा वक़्त गुज़ारा हो, जिससे काफ़ी यादें जुडी हों, खासतौर पर बचपन की, तो उन जगहों से हमारा एक रिश्ता बन जाता है। मेरा दिल्ली से वही रिश्ता है इसीलिए दिल्ली का नाम सुनते ही एक अपनापन सा महसूस होता है। यूँ तो दिल्ली हमेशा ही चर्चा में रही है पर पिछले काफ़ी वक़्त से ये धरना प्रदर्शनों के कारण काफ़ी लाइमलाइट में है, चाहे वो अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव का प्रदर्शन रहा हो या शाहीन बाग़ का। कभी दिल्ली pollution की वजह से बदनाम होती है तो कभी बलात्कार की घटनाओं से शर्मिंदा होती है। कभी यहाँ बॉम्ब ब्लास्ट होते हैं तो कभी पॉलिटिकल ब्लास्ट। पोलिटिकल ब्लास्ट का तो पूरा एक इतिहास रहा है। कहते हैं कि दिल्ली के सिंहासन पर क़रीब 72 राजाओं ने राज किया है। ये मॉडर्न दिल्ली से पहले की बात है जब दिल्ली, दिल्ली नहीं थी, देहली भी नहीं थी। जो राजा यहाँ आया उसने इसे एक नया नाम दे दिया। 

सबसे पहले यहाँ एक हरा-भरा घना जंगल था जो खाण्डववन या इंद्रवन कहलाता था। चंद्रवंशी राजा सुदर्शन यहाँ आये और उन्होंने जंगल कटवा कर यहाँ एक बहुत सुन्दर नगर बसाया जिसका नाम था - खांडवपुरी। लेकिन वो नगरी जल्दी ही उजड़ गई और फिर से जंगल बन गया। उसके बाद पांडव यहाँ आए और उन्होंने इंद्रप्रस्थ बसाया। इंद्रप्रस्थ से दिल्ली बनने के बीच ये सात बार उजड़ी और बसी। चौहान आये तो क़िला राय पिथौरा नाम का शहर बनाया।  खिलजियों ने बसाया सिरी, तुग़लकों ने तुग़लकाबाद फिर जहाँपनाह और फ़िरोज़ाबाद इसके बाद नाम पड़ा दीनपनाह या शेरगढ़ और फिर शाहजहाँनाबाद जिसे शाहजहाँ ने बसाया। उसके बाद तो अँगरेज़ यहाँ आ ही गए थे। 

वैसे अगर चीज़ें अगर बदलती रहे तो उनकी ताज़गी बरक़रार रहती है और इसी से वो विकास भी कर पाती हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में कभी-कभी वो इस क़दर बदल जाती हैं कि उनका असल नाम -पहचान हम भूल ही जाते हैं। जैसे ये कि असल में दिल्ली नाम कहाँ से आया और किसने दिया। इसके बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ कहते हैं कि दिल्ली "दिल" शब्द से बना है जिसका अर्थ है ऊंची जगह या उजड़ी हुई बस्ती। किसी का मानना है कि दिल्ली ऐसी नर्म और पिलपिली जगह को कहते हैं, जहाँ धरती में कील न गाड़ी जा सके। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि कन्नौज का एक राजा था जिसका नाम था - दिल्लू, उसके सेनापति ने अपने राजा के नाम पर इस शहर को बनवाया था। वैसे तोमर वंश के समय दिल्ली को ढिल्ली या ढिल्लिका कहा जाता था और उस वक़्त ये हरियाणा का एक नगर था। ये माना जाता है कि प्रसिद्ध शायर और दार्शनिक अमीर ख़ुसरो के समय तक दिल्ली या देहली नाम सुना जाने लगा था। उन का एक शेर है -

"या कि अस्पम बख़्श, या अज़ ख़ोर बिगरमा बारग़ीर 
या बिफ़रमायद कि गरदूँ नशीमन व देहलू रवम।" 
-अमीर ख़ुसरो- 

इसका मतलब है कि या तो मुझे घोड़ा दे या अस्तबल के दरोगा से कह कि मुझे सामान उठाने वाला दे या कि कोई सवारी मिले जिसमें बैठकर मैं देहलू जा सकूँ। 

इंद्रप्रस्थ, खांडवप्रस्थ, ढिल्ली, ढिल्लिका, योगिनीपुरी, किलोखड़ी, नया शहर, देहलू, देहली, DELHI (देल्ही), या दिल्ली। जाने कितने नाम बदले हैं दिल्ली के और आजकल जैसे नाम बदलने का चलन चलन चल पड़ा है, हम बस दुआ ही कर सकते हैं और उम्मीद भी कि कम से कम दिल्ली का नाम न बदले। 

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